अब उसी लिंक रोड पर आगे बढ़िए, देखिए सिविल
लाइन क्षेत्र में अफसरान के बंगलों के आसपास जिंदगी की भीख मांगते पेड़ों को. यहाँ
इस खुशफहमी में न रहें कि चलिए यहाँ विकास दिखाने की जद्दोजहद में इनकी बलि नहीं
चढ़ाई गई है. उनकी पत्तियों की थकन को महसूस करने के लिए मुझे नहीं लगता कि आपको बोटनिकल
साइंस पढ़ने की जरूरत होगी. चौड़ी सड़क और फुटपाथ के नाम पर पेड़ों के निचले हिस्सों
को सीमेंट से ऐसा फिक्स किया गया है कि जड़ें चाहकर भी अपने हलक तर नहीं कर सकते.
इसी शहर में बैठकर आपको प्रकृति से खेलने का नंगा नाच ही देखना है तो भी आपको ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ेगा. बीडीए के दौर में राजकिशोर नगर बसा तो शहरवासियों को शुद्ध आबोहवा दिलाने के वादे के साथ स्मृति वन अरपा के तट पर बसाया गया. ये सही मायनों में शहरी हरियाली की अवधारणा को साकार करने की बेहतरीन सोच थी. शहरवासियों की भावना को भुनाने यहाँ उनके पूर्वजों की याद में उनसे पौधे रोपवाए गए और नाम दिया गया स्मृति वन. आज स्मृति वन का हाल क्या है यह किसी से छिपा नहीं है. पूर्वजों की थाती को सहेजने में नाकाम हुए और जंगल कटने लगे तो फिर विकास दिखाने की इच्छा बलवती हुई. रातों-रात एक हिस्से को लेकर कांक्रीट का जंगल बना दिया गया और दूसरे हिस्से को कूड़ाघर.
इसी शहर में बैठकर आपको प्रकृति से खेलने का नंगा नाच ही देखना है तो भी आपको ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ेगा. बीडीए के दौर में राजकिशोर नगर बसा तो शहरवासियों को शुद्ध आबोहवा दिलाने के वादे के साथ स्मृति वन अरपा के तट पर बसाया गया. ये सही मायनों में शहरी हरियाली की अवधारणा को साकार करने की बेहतरीन सोच थी. शहरवासियों की भावना को भुनाने यहाँ उनके पूर्वजों की याद में उनसे पौधे रोपवाए गए और नाम दिया गया स्मृति वन. आज स्मृति वन का हाल क्या है यह किसी से छिपा नहीं है. पूर्वजों की थाती को सहेजने में नाकाम हुए और जंगल कटने लगे तो फिर विकास दिखाने की इच्छा बलवती हुई. रातों-रात एक हिस्से को लेकर कांक्रीट का जंगल बना दिया गया और दूसरे हिस्से को कूड़ाघर.
अंत में, मेरे आदरणीय वरिष्ठजन सीवरेज
प्रोजेक्ट, चिमनियों के नित्य प्रति छोड़ते जहर और खेतों में फसल की जगह उगती
अट्टालिकाओं को लेकर हर दिन जाल पन्नों को रंगते रहते हैं. सो मैंने सोचा कि बड़ी
जिम्मेदारी बड़ों को निभाने दो. मैं कुछ छोटे-छोटे मसलों का पुलिंदा ही बना लेता
हूँ. प्रयास कैसा लगा बताइएगा. अरे.. अरे.. एक मिनट. उपसंहार तो लिखा ही नहीं. वैसे
पढ़ते-पढ़ते मुझे विकास का दुश्मन मान रहे होंगे तो मेरा ये कहना है कि बेशक विकास
हो. ईमानदारी से हो. इस फेर में पर्यावरण का कुछ अंश अगर भेंट चढ़ना ही है तो ये
अंतिम विकल्प होना चाहिए, न कि पहला कदम.
– नमस्ते.
आपका
अपना
संदीप
यादव
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